जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे !
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुख-सार हरे !
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर, जय जय प्रेमागार हरे !
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे !
निर्गुण जय जय सगुण अनामय, निराकार, साकार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे !
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे !
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेस्वर, भीमेश्वर, जगतार हरे !
काशीपति, श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय अघ-हार हरे !
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ, मृत्युंजय, अविकार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो !
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु, तव महिमा अपार वर्णन हो !
जय भवकारक, तारक, हारक, पातक-दारक, शिव शम्भो !
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर शिव शम्भो !
पार लगा दो भवसागर से, बनकर करुणाधार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
जय मनभावन, जय अतिपावन, शोक-नशावन शिव शम्भो !
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर, धवल-वरन-तन शिव शम्भो !
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन, शिव शम्भो !
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर, धवल-वरन-तन शिव शम्भो !
मदन-कदन-कर पाप हरन हर-चरन मनन धन शिव शम्भो !
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
भोलानाथ कृपालु दयामय, औघड़दानी शिव योगी !
निमित्र मात्र में देते हैं, नवनिधि मनमानी शिव योगी !
सरल ह्रदय अतिकरुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी !
भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर बने मसानी शिव योगी !
स्वयं अकिंचन, जनमन रंजन, पर शिव परम उदार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
आशुतोष इस मोहमयी निद्रा से मुझे जगा देना !
विषय-वेदना से विषयों को माया-धीश छुड़ा देना !
रूप-सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना !
दिव्य-ज्ञान-भण्डार-युगल-चरणों में लगन लगा देना !
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद संचार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो !
शक्तिमान हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो !
पूर्ण ब्रह्म हो, दो तुम अपने रूप का सच्चा ज्ञान प्रभो !
स्वामी हो, निज सेवक की सुन लेना करुण पुकार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!
तुम बिन, व्याकुल हूँ प्राणेश्वर आ जाओ भगवंत हरे !
चरण-शरण की बांह गहो, हे उमा-रमण प्रियकंत हरे !
विरह व्यथित हूँ, दीन दुःखी हूँ, दीन दयालु अनन्त हरे !
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे !
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे !
पार्वती पति, हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे !!